राणा सांगा की वीरता पर प्रश्न क्यों?

खंडित तन, अनगिनत घाव, फिर भी न डिगा वो वीर,
एक आँख खोई रण में, एक हाथ हुआ अधीर।
सौ से अधिक थे घाव शरीर पर, साहस था चट्टान,
फिर भी मेवाड़ की रक्षा में, अर्पित कर दी जान।
बाबर की प्रचंड सेना, तोपों का था शोर,
फिर भी राणा सांगा का, गर्जन था घनघोर।
खानवा के उस रण में, अद्भुत दृश्य था छाया,
एक अकेला योद्धा, लाखों पर था भारी आया।
क्यों पूछते हो वीरता पर, जब इतिहास है साक्षी,
टूटे अंगों से भी जिसने, दुश्मन की तोड़ी छाती।
राजपूतों का गौरव था वो, स्वाभिमान की ज्वाला,
अपनी धरती माँ के लिए, हर संकट को था टाला।
प्रश्न क्यों उठाते हो उस पर, जिसने हार न मानी,
अंतिम साँस तक लड़ा वो, अद्भुत थी कहानी।
भारत माँ का वीर सपूत, युगों-युगों तक अमर,
राणा सांगा की वीरता पर, क्यों उठाते हो तुम प्रश्न प्रखर?
उनकी ख्याति दिग-दिगंत तक, फैली हुई है आज,
ऐसे अद्वितीय योद्धा पर, कैसा ये संदेह का काज?
मातृभूमि के चरणों में, जिसने जीवन दिया दान,
आलोक उस वीर की वीरता पर प्रश्न करना, है कैसा अज्ञान?
कवि
आलोक पांडेय
गरोठ, मंदसौर, मध्यप्रदेश।