शहीदी दिवस
हर तरफ थी शोक की लहरें
चहुँ ओर अंधेरा छाया था।
पढ़ रहे थे किताब लेनिन की
जब फांसी के लिए बुलवाया था।
तेईस साल के नौजवान भगत से
अंग्रेजों में खौफ समाया था।
मौत खड़ी थी सामने उनके
चेहरे पे न शिकन को पाया था।
देश आजाद कराने को
मौत को गले लगाया था।
हंसते हंसते चढ़ गये वो फांसी
अंग्रेजों ने कहर बरपाया था।
राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह
ये देश पटल पे छाया था।
देश की खातिर शहीद हुए
उनकी याद में दीपक जलाया था।
23 मार्च हर साल देश में
शहीदी दिवस कहलाया था।
@ विक्रम सिंह