चंद प्रश्न
///चंद प्रश्न///
हैं टिमटिमाते दीप जो,
है उनमें वही उर की व्यथा।
भेज चहुं दिश अंशुओं को,
तम से सुनाते वे कथा।।१।।
टंकार सुनकर धनुष की,
उसका हृदय दहल जाएगा।
संग्राम की क्या बात करते,
वह बाण भी न चढ़ा पाएगा।।२।।
टूटे हृदय को आज ही,
दे आओ संयोग का संदेश।
वियोग में वह जलती रही,
मैं ढूंढता रहा देश और देश।।३।।
टूटी फूटी और जीर्ण शीर्ण,
यह कर्मवीरों की कुटियां।
क्या इन्हें देख पाते हैं नयन,
तनती नहीं तब भृकुटियां।।४।।
ढीले पड़ चुके हैं तार,
या वादक शिथिल हो गया है।
या वीणा का रवमय संगीत,
नीरव जगत में खो गया है।।५।।
टहनियों पर बैठकर वे,
पिऊ का राग गाती हैं।
वियोग में प्राण प्रिय के,
दिशाओं को संदेश सुनाती हैं।।६।।
टीस हरदम हृदय से उठ,
गाती विरह के गान।
प्राण प्रिय वे पविमान थे,
दिया होता उन्हें सम्मान।।७।।
मत भूल कर भी बैठ तू,
मन में व्यथा ले संसार की।
मन वचन कर्म से ज्ञान से,
कर बात प्रगति की उत्थान की।।८।।
स्वरचित मौलिक रचना
प्रो. रवींद्र सोनवाने ‘रजकण’
बालाघाट (मध्य प्रदेश)