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26 Dec 2024 · 1 min read

#लघुकथा-

#लघुकथा-
■ मकड़ी की भूख…।
【प्रणय प्रभात】
दीवार के कोने में जाल बुन चुकी मकड़ी ख़ुराक़ को लेकर निश्चिन्त थी। कुछ देर बाद उसकी भूख एक-एक कर सब को निगलती जा रही थी। उसका बुना जाल भी लगातार बढ़ता जा रहा था। जो एक दिन उसे ही निगल गया। शायद यही नैसर्गिक न्याय था। ऊपर वाले का।।
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#कथ्य-
मकड़ी दीवार पर ही नहीं, परिवारों में भी होती है। सम्बन्धों की मौत पर मातम के बजाय मज़ा करने वाली। जिसे एक दिन उसी के प्रपंच ले डूबते हैं। समझदार अपने आसपास की मकडियों व उनके जाल को आसानी से देख व परख सकते हैं।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)

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