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6 Apr 2024 · 1 min read

वो अनुराग अनमोल एहसास

नेह ,स्नेह, अनुराग, दुलार
अकारण नहीं उपजे यह प्रभाव।
स्नेह भाव नहीं छद्म
ईश्वर प्रदत एकाएक कर्म।
सर्वस्व स्नेह अविरल अनन्त
मौसम में आता जैसे सुहाना बसंत।
भंगुर नहीं जीवन का सम्बल
स्नेह वो प्यार अनुपम सकल।
स्नेह तड़ाग मन के भावों की
गहराई अपनेपन के गांवों की।
ना जाने क्यूं कैसे वैसे
उमड़ पड़ा स्नेह बादल
फुहार अन्तर मन का सावन।
स्नेह सरोवर ममतामय रस बहा
ह्रदय हर्ष विशुद्ध चरमोत्कर्ष प्रवाह।
स्नेह धरातल आयाम परिणाम
जीवन में किसी कमी का विराम।।
स्नेह तार का झंकार
नेह नीर का अनुपम प्यार।
आदर्श अस्तित्व मिलन बेमोल
पर मोल है वो अनमोल।
स्नेह रस स्नेह स्वर भाव-विभोर
नेह का अंतर प्रस्फुटन अपार।
स्नेह नेह शब्द बेबस
मन पुलकित बस
नेह गहराई का तूफ़ान
शांत शौम्य ठहराव
निरंतर निर्विकार भाव ।
जुड़े तुझ से नेह
बिन बदरा बरसे जब मेह।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान

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