#सत्य_लघुकथा-

#सत्य_लघुकथा-
■ नया घोंसला….!
★ छोटा किस्सा, बड़ी प्रेरणा
【प्रणय प्रभात】
यह लगभग दिन भर का ही काम था उस चिड़िया का। कभी तिनका,कभी रेशे तो कभी कपड़े की चिंदी चोंच में दबा कर लाना। उनसे घर के बाहरी बरामदे के एक सुरक्षित से कोने में एक सुंदर से घोंसले का रूप देना। देखते ही बनता था उसका परिश्रम और आशियाना, जो आकार पा चुका था।
फिर एक दिन वो हुआ, जिसकी कल्पना तक नहीं थी। छत के रास्ते बरामदे में घुसे एक उपद्रवी बन्दर ने घोंसला तहस-नहस कर दिया। चीं-चीं-चीं-चीं करती बेबस चिड़िया देर तक उस कोने के इर्द-गिर्द बेचैनी से मंडराती दिखाई दी। इस घटनाक्रम ने रात भर सोने नहीं दिया हमें। कर्मयोगिनी चिड़िया की लगन और आपदा रूपी बन्दर की करतूत सारी रात व्यग्र करती रही। लगा कि अगली सुबह कुछ और बुरा लेकर आएगी। मगर हुआ वो जो आशंकित सोच के विपरीत था।
अगली सुबह वही चिड़िया चोंच में घास-फूस दबाए अपने काम में जुटी नज़र आई। अब बरामदे के दूसरे कोने में एक नया घोंसला फिर से आकार पाने जा रहा था। मन अब व्यथित नहीं चकित व रोमांचित सा था। उस चिड़िया ने मुझे पल भर में उन तमाम आशंकाओं व चिंताओं से लम्बे समय के लिए उबार सा दिया था, जो आने वाले कल से जुड़ी आशंकाओं व हताशाओं के रूप में थीं। लगा कि एक नन्ही चिड़िया ने जीवन को बड़ी दिशा दे दी थी।
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-सम्पादक-
न्यूज़&व्यूज (मप्र)