नववर्ष

हृदय के सब भाव कर दो व्यक्त मन में हर्ष है।
खिलखिला कोहरे में आया झूमता नववर्ष है।।
तु रहेगी बन पपीहा कब तलक ऐसे ही प्यासी।
छोड़ दे वनवास प्रिय, छोड़ दे मन की उदासी।।
भोर भी अब कह रही, चहुंओर ही उत्कर्ष है।
खिलखिला कोहरे में आया झूमता नववर्ष है।।
सांझ की इस रक्तिमा में, कोयलें भी गान करतीं।
तुम निरन्तर हो सफल, नित नए प्रतिमान गढ़ती।
अधर क्यों स्थूल हुए ? जब प्रेम का स्पर्श है।
खिलखिला कोहरे में आया झूमता नववर्ष है।।
पुष्प पल्लव ढूंढते हैं, भ्रमर का गुंजन कहाँ?
प्रेम का उद्गम हृदय वो, अनघ सा वो मन कहाँ?
मन में अंतर्द्वंद्व कैसा ? कैसा यह संघर्ष है।
खिलखिला कोहरे में आया झूमता नववर्ष है।।
धुंध क्यों छटते नही हैं? चुभ रहा क्यों शूल है?
सामने मधुमास होगा, गर मिले दो फूल हैं !
आएंगी फिर से बहारें, हृदय में आकर्ष है।
खिलखिला कोहरे में आया झूमता नववर्ष है।
कवयित्री शालिनी राय ‘डिम्पल’
आजमगढ़, उत्तर प्रदेश।