जाडा अपनी जवानी पर है
जाड़ा अपनी जवानी पर है,
उतारू अपनी मर्दानी पर है।
डरता है युवा वर्ग भी इससे,
आता जब ये शैतानी पर है।।
डरकर दुबके सब रजाई मे,
जिंदगी न पड़ जाये खटाई मे।
मिल जाये गर्म चाय पत्नी से,
लेटे लेटे ही उनकी रजाई मे।।
हाथ भी कांप रहे है जाड़े मे,
लिख नहीं पा रहे है जाड़े मे।
लिखें तो लिखें क्या लिखें हम,
जब शब्द ही डर रहे है जाड़े मे।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम