भारत की वेदना

एक कवि ने पूछा अपने भारत देश से
” मना रही है तेरी संतान तेरी आजादी के ७६ वर्ष ,
क्या तू बहुत खुश है ?”
भारत ने व्यंग्य से मुस्करा कर कहा ” खुश !! हुंह!
हूं भी और नहीं भी ।,”
कवि ने हैरानी से कहा ” अरे ! मगर क्यों ?”
भारत ने कहा “,मैं खुश तो हूँ मगर पूरी तरह से नहीं ,
मैं खुश हूं बेशक आजादी के बाद प्राप्त की गई उत्तम विकास यात्रा को देख कर ,मगर !
कवि ” मगर !! ”
भारत ” मैं दुखी हूं ,संतप्त भी हूं ,”
कवि ” क्यों ?”
भारत ने ठंडी आह लेकर जवाब दिया “मेरी संतानों में मेरी बेटियां ,बहनें ,माताएं और छोटी बच्चियां भी है ।दोस्त ,! जब तक वो दुखी है ,पीड़ित है आहत है ,मैं कैसे खुश हो सकता हूं ? बताओ ! मैं खुश हो सकता हूं ?
समझदार को इशारा ही काफी होता है ।
कवि ने दुख से सर झुका लिया ,और दोनों की पलकें
आसूंओं से भीग गई ।