रचना का नाम : ( सहीम का रज़िया के लिए प्यार )

रचना का नाम : ( सहीम का रज़िया के लिए प्यार )
रचनाकार: बाबिया खातून
विधा: जीवनी
रजिया खातून अपनी पुरानी बीती बातें शादी की सोच रही थी कि उसकी शादी दो हजार अठारह में अक्टूबर में हुई थी और सारी चीजें अच्छे से हुई थी और उसके पति ने उसे जब पहली बार देखा था तभी पसंद कर लिया था और फिर शादी भी ठीक ठाक से हुई।
फिर वह सारी चीजें सोचती है कि उसकी शादी कितने अच्छे से हुई फिर इसी में सोचने लगती है आगे आगे कि सारी रस्में रिवाज सब चीजें अच्छे से हुई फिर बाद में वह सोचती है कि हमें हमारे चीजें कितने अच्छे से होती थी पर अब वैसा नहीं था।
यही वह सोचती है कि फिर उसके बाद फिर धीरे धीरे वह सबकी चहेती बनती जाती है फिर बात तब की रहती है कि जब उसे उसका बड़ा बेटा शर्मद पैदा हुआ था शर्मद के समय उसे काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा था।
रजिया सोचती है कि शर्मद के समय भी मेरा ऑपरेशन हुआ था और वह तो पैदा हो गया लेकिन अब सारी चीजें कैसी होगी अब क्या होगा मेरे साथ। दरअसल रजिया यह सोच रही रहती है कि बड़ा बेटा जो शर्मद है वह तो पैदा हो गया ऑपरेशन के थ्रू फिर क्या अब ये बेटा कैसे पैदा होगा और उस समय रजिया का तबियत भी इतना खराब था कि कई लोग बोल रहे थे कि अरे इसके ऊपर तो कुछ होगा या कुछ करवाया है किसी ने पर यही सब रजिया सोचती है कि मुझे क्या हुआ है क्या मैं बीमार हूँ।
लेकिन फिर उसे पता चलता है कुछ दिनों बाद ,वह अपने मायके आती है मायके आने के बाद उसे तबियत खराब और थोड़ी उल्टियाँ भी होती है फिर वह अपने कुछ दिन मायके में रहकर लगभग एक डेढ़ माह रहकर फिर वह अपने ससुराल रवाना हो जाती है।
ससुराल जाने के बाद उसे पता चलता है कि वह फिर से माँ बनने वाली है इसी बात को लेकर रजिया चिंतित थी कि क्या उसका बच्चा फिर से कैसे होगा यही सब बात को लेकर चिंतित थी।
तो उसका पति सहीम उसका हौसला बढ़ाता है और बोलता है कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा तुम परेशान मत हो लेकिन वह फिर भी परेशान होती है सहीम उसे लाकर फल सब्जियाँ तथा तरह तरह के खाने के अच्छे अच्छे सामान देता है लेकिन वह उसका मन डरा रहता है और बोलता है कि तुम्हें कुछ नहीं हुआ है तुम्हारी तबियत ऐसी ही खराब है इन सब चीजों के बारे में मत सोचो।
मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ
फिर सहीम रज़िया का हौसला बढ़ाने के लिए कविता लिखता है और सुनाता है
बीमारी के इस आलम में तेरे लिए रोते है ,तड़पते है
सुन मेरी समुन्दर के धागों में लिपटी मोहब्बत को मैं
ग़ज़ल और नज़म के उड़ानों के रुबाई में रखता हूँ सहेज कर ये सहीम सिर्फ रज़िया खातून उसके रूमानी दिल में बस्ती है
फिर रज़िया बोलती है शर्माकर हटिए ना
यही सब बात रजिया खातून सोचती रहती है और फिर ऐसे ही कुछ महीने बीत जाते हैं फिर उसका सातवाँ महीना चलता है.
इसी तरह से आठवां महीना में भी सहीम उसका ध्यान रखता है रजिया खातून का यानी और रजिया खातून सोचती है फिर इसी तरीके से डिलीवरी का वक्त करीब आता है और डिलीवरी में जो बच्चा पैदा होता है वो भी ऑपरेशन से ही पैदा होता है इसी कारण रजिया खातून बहुत ही परेशान थी कि यह बच्चा सही सलामत होगा कि नहीं।
तो फिर हो जाता है बच्चा उसे और वो बोलती है कि चलो बच्चा तो ठीक से पैदा हुआ है सही सलामत बच्चा पैदा हुआ है आज मुझे ठीक लग रहा है कि सही सलामत बच्चा हुआ फिर उसके बाद उस वह अपने घर वालों को बताती है कि है कि मुझे फिर से ही बेटा हुआ है और बेटा का नाम अभी सोचा नहीं गया है लेकिन बच्चा अच्छे से पैदा हुआ है।
फिर कुछ दिनों के बाद बच्चे के का नाम रखा जाता है और छोटे बेटे का नाम सालिक नाम रहता है और वह फिर धीरे-धीरे समय बीतता है जैसे उसकी रजिया की तबियत पहले थी वैसे ही रहती है लेकिन फिर धीरे-धीरे सुधार आता है लेकिन उसके शरीर में और सर में दर्द होता है यही वह बात समझ नहीं पाती है।
फिर पता चलता है कुछ दिनों के बाद कि उसे एक बीमारी है और वह बीमारी पेट से जुड़ी है लेकिन वह बहुत ही घबराती है अपने घर वालों को बताने में उसका पति जो सहीम है वह उसका हौसला बढ़ाता है और बोलता है कि तुम अपना हौसला जाया करो और अपने घर वालों को बताओ।
फिर वो घर वालों को बताती है फिर सारी चीजें ठीक हो जाती है।
फिर उसे पेट से जुड़ी जो बीमारी है
उससे लड़ने की ताकत रज़िया में आ जाती है
फिर रज़िया कहती है हस्बैंड जी आपके लिए कुछ बोलना चाहूंगी फिर सहीम ,
तुम सहीम आफ़ताब के रौशनी का सितारे महक हो
महताब के आशिक का मोहताब हो
तुम बस हो मेरे सहीम