कोई टूटे तो उसे सजाना सीखो,कोई रूठे तो उसे मनाना सीखो,
अर्जुन सा तू तीर रख, कुंती जैसी पीर।
मेरे बाबूजी लोककवि रामचरन गुप्त +डॉ. सुरेश त्रस्त
सुबह का नमस्कार ,दोपहर का अभिनंदन ,शाम को जयहिंद और शुभरात्र
जीवन में कुछ भी मुफ्त नहीं है, आपको हर चीज के लिए एक कीमत चु
*हिंदी साहित्य में रामपुर के साहित्यकारों का योगदान*
ज़िंदगी पर यक़ीन आ जाता ,
- घरवालो की गलतियों से घर को छोड़ना पड़ा -
किसी से भी कोई मतलब नहीं ना कोई वास्ता…….
आप काम करते हैं ये महत्वपूर्ण नहीं है, आप काम करने वक्त कितन
दे संगता नू प्यार सतगुरु दे संगता नू प्यार
बेटियाँ अब देश में कैसे जियें।