बीमारी
कई दिनों से जब…
अखबारों में कुछ भी नहीं लिख पाया !
तो मेरे एक शुभचिंतक का पत्र मेरे पास आया !!
श्रीमानजी ! क्या कारण है !
कि आप नहीं लिख रहे है ?
कहीं आप…
साहित्य क्षेत्र से तो सन्यास नहीं ले रहे है ?
मैनें कहा…
प्रिय बन्धु ! इन दिनो…
मैं एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय बीमारी से काफी चिंतित और त्रस्त हूं !
बस ! इसी की दवा ढूंढने में व्यस्त हूं !!
क्योंकि यह बीमारी के दोष बड़े ही अटपटे है !
हमारे मनोवैज्ञानिक भी इसी की दवा ढूंढने में डटे है !!
अभी तक इस बीमारी की दवा का
पता नहीं लग पाया है !
देश, विदेश क्या, विश्व को भी इसने
अपने प्रभाव में लाया है !!
कमबख्त ! यह बीमारी बड़ी ही खतरनाक है !
अब, इसकी दवा खोजने में ही हमारी साख है !!
यह दवा पागलपन और मानसिक रोगों से
शीध्र ही मुक्ति दिलाएगी !
इतना ही नहीं पति-पत्नी, सास-बहू, भाई-बहन खास तौर से प्रेमी-प्रेमिकाओं जैसे अनेक लोगो को
फिजूल विवादों से तत्काल बचाएगी !!
यह बीमारी सन्देह और शक के नाम से
पुकारी जाती है !
जिसके रोगाणु लगते ही…
इसके मरीज की जान तक चली जाती है !!
प्रिय बन्धु ! जिस दिन इस दवा का
अविष्कार हो जाएगा !
सच ! मानिए…
उस दिन से देश में सुख ही सुख नजर आएगा !!
• विशाल शुक्ल