नीर के तीर पर पीर को देखें अखियां…

नीर के तीर पर पीर को देखें अखियां
पीर में तीर पर नीर बहाएं अखियां
नीर में तीर पर छब जब दिख आई तो
छब देख- देख रोई अखियां
रोई अखियां अधर मौन हुए
मौन अधर तीर पर अश्रु ले आई अखियां
बिरह देख तीर से नीर का
भारी हो जाए बार- बार ये अखियां
कोई संदेशा जब डाकिया लाया
कागज में छब ढूंढे अखियां
सीमा पर बैठा है साजन
साजन की राह ताके अखियां
सुशील मिश्रा ‘क्षितिज राज’
देश की सेवा कर रहे उन सभी नौजवानों को ये कविता समर्पित है जो देश सेवा को अपने जीवन में प्रथम स्थान दिए और हंसते हंसते तिरंगे की सुरक्षा में अपनी जान का बलिदान देने से पीछे नहीं हटे और उन तमाम जीवनसंगिनी के नाम है जो इस बिरह को जानती है ओर एक पत्र में ही अपने जीवनसाथी का हाल समझ जाती है आप सभी को नमन है
सुशील मिश्रा ‘क्षितिज राज’