कितनी सुरक्षित महिलाओं के हाथों में बागडोर ?
फैसला हो गया गांव में सत्ता की बागडोर या तो महिलाओं के हाथों में पहुंचेगी या उन तथाकथित पंच पति और सरपंच पतियों के हाथों में अप्रत्यक्ष रूप से पहुंच जाएगी जो अपने स्वार्थ की खातिर ना सिर्फ पत्नी को रबर की मुहर बनाकर उनका उपयोग करना जानते है बल्कि पत्नी के पद की गर्मी में स्वयं अकड़कर हाथ सेकते है ! सरकार ने चाल ही ऐसी चली है कि गांव की सत्ता में महिलाओं की भागीदारी पर प्रश्न चिन्ह ? लग जाता है ! बात सत्य कड़वी और मनन करने योग्य है सरकार ने भले ही गांव की सत्ता में महिलाओं की भागीदारी बढ़े और महिलाएं हर क्षेत्र की तरह अपने घर चूल्हे चौखट से निकलकर सत्ता का संचालन अपने ढंग से करें इन उद्देश्यों को देखते हुए महिलाओं के लिए प्रगति का द्वार खोला हो, पर प्रश्न उठता है कि निरक्षरता के चलते महिलाओं के हाथों में ग्रामीण सत्ता की बागडोर कितनी सुरक्षित रह पाएगी ? जबकि अभी तक प्राप्त आंकड़े बताते है कि ग्रामीण और यहां तक कि नगरीय स्तर पर भी महिलाओं के पास आई सत्ता की शक्ति भरपूर उपयोग महिलाओं ने कम बल्कि उनके पति या उनके वे तथाकथित शुभचिंतक जो प्रशंसा के पुल बांधते भाभी भुजाई के आगे-पीछे चलते उन्होने किया है परिणामत: कई मामले में महिला मात्र रबर स्टाम्प होने के कारण ना सिर्फ विभिन्न प्रकारों के विवादों में फंसी बल्कि कई बार उन्हें अपने पद से भी हाथ धोना पड़ा है जबकि कई मामलों में महिलाओं ने पुरुषों से अच्छा सत्ता का संचालन कर आश्चर्यचकित कर दिया है वह चाहे श्रीमती इन्दिरा गांधी हो या श्रीमती सुषमा स्वराज हो, यदि दोनो तथ्यों पर गौर किया जाए जो यह बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि जहां महिलाओ ने रबर स्टाम्प बनकर सत्ता का संचालन किया है वहां उन्हे मुंह की खानी पड़ी है या फिर उनका संचालन ठीक नहीं रहा है जबकि महिलाओं ने जहां स्वविवेक से सत्ता का संचालन किया है वहां ना सिर्फ महिलाओं की छवि अच्छे शासन संचालक के रूप में सामने आई है बल्कि उनका संचालन ऐतिहासिक शानदार रहा है ऐसा नही है कि महिलाएं सत्ता का संचालन ना करे या फिर खुली मनमानी स्वतंत्रता से तानाशाह बनकर शासन करे !महिलाएं समाज के हित में राष्ट्र कल्याण में अवश्य ही सत्ता का संचालन करे किंतु आवश्यकता इस बात की है कि वह सत्ता संचालन में स्व बुद्धि विवेक और कानून सम्मत तरीके से राष्ट्रहित और जनकल्याण की भावना रखकर अपनी स्वतंत्रता का प्रयोग करे तभी वह सत्ता का सही ढंग से संचालन कर सकती है और इसके लिए उन्हें प्राथमिकता से शिक्षा, साक्षरता की ओर रूचि एवं ध्यान देने की आवश्कता है। बहरहाल अब देखना है कि गांव की सत्ता में निरक्षरता रूपी काले गहन अंधकार में महिलाएं अपने बुद्धि विवेक से कितना प्रकाश फैलाएगी और कितनी सुरक्षित रह पाएगी ? यह समय ही बताएगा।
• विशाल शुक्ल