“तेरे द्वार पर”

दीन हीन थी,आके तेरे द्वार पे धनवान मैं बन गई
ना बचा कोई राग द्वेष,बस आस सिर्फ़ तेरी रह गई
तूने किया उपकार मुझ पर, ऐसी जिंदगी संवर गई
दुख सारे कट गए, खुशियों की मिठास बड़ गई
हो गये हर ओर उजाले,अंधेरे सारे जीवन के कट गये
यूं लगा किरण बादलों को चीरती,दिल में घर कर गई
खो गई तुझमें इस तरह कि दुनिया की खबर ना रह गई
रह गया बस तू और मैं,बाकी सब मोह माया मिट गई
तेरा मेरा रिश्ता यूं साथी- सखा सा हो गया।
हर वक़्त मुझको अब,तेरी लगन सी लग गई।।
ना बड़ा सकी कदम ना निर्णय कुछ ले सकी।
हर सफर में अब मुझे,तेरे साये की आदत पड़ गई।।
नहीं लगता अकेलापन,जब से तुझको धाया है।
मुझे अब इस दुनिया में कमी ना दूजी रह गई।।
उदासी का करवा धीरे-धीरे तेरी दया से छठ गया।
अब उमंग और उल्लास की बरकत मेरे घर हो गई।।
मधु गुप्ता “अपराजिता”