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3 Feb 2024 · 1 min read

मैं भी डरती हूॅं

हां ! सच कहती हूॅं
सच में मैं भी डरती हूॅं ,

मेरे स्वभाव पर मत जाना
मेरे रूआब पर मत जाना ,

सबके पास नहीं आती हूॅं
सबके पास नहीं जाती हूॅं ,

क्योंकि मुझे भी डर लगता है
ये ‘ मेरा मैं ‘ मुझसे कहता है ,

अपनों के झूठ से डरती हूॅं
अपनों के फरेब से डरती हूॅं ,

उनके अज़ीज़ बनने से डरती हूॅं
उनके अजनबी बनने से डरती हूॅं ,

उनके प्यार से डरती हूॅं
उनके तकरार से डरती हूॅं ,

उनके मेकअप से डरती हूॅं
उनके आवरण से डरती हूॅं ,

उनके ज्यादा मीठे से डरती हूॅं
उनके ज्यादा तीखे से डरती हूॅं ,

सच्चे अपनों का सामना कर सकती हूॅं
लेकिन अपनों के छिपे वार से डरती हूॅं ,

इतनी तेज़ और बहादुर मैं
अपनों की हर चाल से डरती हूॅं ,

हां ! सच कहती हूॅं
सच में मैं भी डरती हूॅं ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )

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