वक्त पर जरूरत के मानिद आवाज़ बदलती देखी है

वक्त पर जरूरत के मानिद आवाज़ बदलती देखी है
दिन मुड़ने पर अपनों की सौगात बदलती देखी है
कोई किसी मेहनतकश को कौन कहां तक रोकेगा
हमने तो गूंगो की बस्ती भी आग उगलती अच्छी है
✍️कवि दीपक सरल
वक्त पर जरूरत के मानिद आवाज़ बदलती देखी है
दिन मुड़ने पर अपनों की सौगात बदलती देखी है
कोई किसी मेहनतकश को कौन कहां तक रोकेगा
हमने तो गूंगो की बस्ती भी आग उगलती अच्छी है
✍️कवि दीपक सरल