शिक्षक
शिक्षक ने देकर दुआ !
हमारे अन्तर्मन को छुआ !!
और प्रश्न किया…
नेता उदास क्यों था ?
शिक्षक खड़ा क्यों था ?
हमने कहा श्रीमान !
आपका प्रश्न बिलकुल गलत है !
क्या आपको शराब की लत है !!
सही प्रश्न यह है…
गधा उदास क्यों था ?
साधु प्यासा क्यों था ?
इसका उत्तर “लोटा” है…
जो हमें मौखिक रटा है !
और हमारे दिल को भी पटा है !!
गुरूजी बोले…
बेटा ! इस घोर कलयुग में
जहां इंसान इंसान को खा रहा है…
वहां ऐसे प्रश्नों का कोई औचित्य नहीं होता है !
ये आत्मा बड़ी दुखती है…
जब हमारे देश का कानून,
सभ्यता समाज और संस्कृति सहित
सूने वन में जाकर रोता है !!
तुम ही सोचो !
गधे और साधू वाले सही प्रश्न की तरह
ना वैसे ईमानदार, वफादार, परिश्रमी गधे रहे
और ना ही वैसे तपस्वी मानवतावादी जितेंद्रिय साधू
इस घोर कलयुग में समय के घूमते पहिए
और स्वार्थ ने सभी शब्दों के अर्थ
और उनकी परिभाषा बदल डाला है !
इसीलिए मैनें इस प्रश्न का स्वरूप आधुनिक समयानुसार बदल कर यह कर डाला है…
कि नेता उदास क्यों था ?
और शिक्षक खड़ा क्यों था ?
हमने गुरूजी के मर्म को
और उनके पावन धर्म-कर्म को
पहली बार अच्छी तरह जाना
और चिड़िया की आंख की तरह
उनके लक्ष्य को पहचाना
हमनें कहा…
गुरुवर ! वर्तमान घोर कलयुग का समय है !
जहां मानवता और लज्जा को गिरवी रखकर
युद्ध धर्म, सत्य, न्याय पाने के लिए ना होकर
स्वार्थ सिद्धि और सत्ता रूपी कुर्सी पाने
के लिए होता है !
युद्ध परिवार का हो, समाज का हो या विश्व का
नेता उदास हो या शिक्षक खड़ा…
उसका प्रमुख कारण यही है !
केवल “कुर्सी” नहीं है !!
• विशाल शुक्ल