हे कृष्णा
डॉ गुंडाल विजय कुमार 'विजय'
"बेखबर हम, नादान तुम " अध्याय -2 "दुःख सच, सुख मात्र एक आधार है |"
उम्मीद की डोर
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
जो कण कण में हर क्षण मौजूद रहता है उसे कृष्ण कहते है,जो रमा
दीवाल पर लगी हुई घड़ी की टिकटिक की आवाज़ बनके तुम मेरी दिल क
ये दिल्ली की सर्दी, और तुम्हारी यादों की गर्मी
आगे बढ़ने एक साथ की जरूरत होती है
तुम जो कहते हो प्यार लिखूं मैं,
मुझे किताबों की तरह की तरह पढ़ा जाए
पारिवारिक समस्या आज घर-घर पहुॅंच रही है!
सनातन धर्म और संस्कृति पर मंडराता एक और बड़ा खतरा (Another big threat looming on Sanatan religion and ulture)
गाँधी जी की अंगूठी (काव्य
एक सरल मन लिए, प्रेम के द्वार हम।