“बेखबर हम, नादान तुम ” अध्याय -2 “दुःख सच, सुख मात्र एक आधार है |”
हर व्यक्ति सोचता है कि मुझे कहीं से सुख मिल जाए, क्योंकि दुःख से सभी लोग दूर ही भागते है, सामाजिक जीवन में कोई भी व्यक्ति दुःख को अपना नहीं चाहता है इसी कारण पूरी जिंदगी सुख कि प्राप्ति में निकाल देता है और अंत समय में दुःख ही उसके साथ होता है, दुनिया के किसी भी सामाजिक व्यक्ति को देख लीजिए, जब उसकी मौत होती है तब उसके पास कोई न कोई दुःख ही साथ होता है | दार्शनिकों ने भी दुःख और सुख को एक आभास मात्र माना है परन्तु हम सुख को ही सच और दुःख को डर मान लेते है और इसलिए हम ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, कठोरता, सिद्धांतवादिता को छोड़कर, घोर उदारवादिता,असमानता, गुलामी, बेवशी, निरंकुशता, और क्रूरूरता, नीचता के कृत्य करने लग जाते है ताकि हमारे पास कोई दुःख ना आ सके | इसीलिए संविधान में हर व्यक्ति को किसी न किसी पद पर आसीन होते वक़्त सत्यनिष्ठता और समानता की शपथ दिलाई जाती है,कि वह चुनौतियों का सामना करें, परन्तु हम क्या करते है? हम सुख के लिए सरल रास्ता खोजते है, पावर का सही इस्तेमाल करने कि बजाय अपने चापलूस ढूंढ़ते है,हमारी प्रशंसा करने वाले ज्ञानी खुदगर्ज ढूंढ़ते है,खुद के कर्तव्यों को छोड़कर फिर ऐसा वातावरण बनाते है कि उन्हीं भ्रष्ट लोगों के संसार में शामिल हो जाते है ताकि हमें ऐसा लगे कि हमें कोई नहीं देख रहा,ऐसा करके खुद को सुख कि अनुभूति कराते है जबकि उसी वक़्त अंदर से एक आवाज़ आती है और कहती है “तुम गलत कर रहें हो ” ये आवाज़ ही दुःख का कारण बन जाती है, फिर हम अपने अधीनस्थ को ये अहसास कराते है कि “हमसे महान और कोई नहीं है”…….
मेरा मानना है कि “शक्ति ” को समान रहना चाहिए, ज्ञान होना चाहिए, चापलूसी कि जगह “कर्मठता ” को प्राथमिकता देना चाहिए, नियमों को सिद्धांत बना लेना चाहिए और सत्य की राह पर चलना चाहिए फिर अपने सामने चाहे कोई “महाशक्ति ” ही क्यों न हो……ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार भगवान महादेव(शक्ति )के द्वारा गणेश जी को द्वार के अंदर प्रवेश न करने पर,दंड देने के कारण माता पार्वती (महाशक्ति ) सामने ख़डी हो गई | इस प्रकार हो सकता है आपको तनाव हो, परन्तु आपको सच (दुःख ) के साथ जीना आ जायेगा और आपके कहने से पहले आपका काम हो जायेगा…………