sp42 पीठ में खंजर/ परंपरा तुलसीदास की
sp42 पीठ में खंजर/ परंपरा तुलसीदास की
पीठ में खंजर घुसे कितने मुझे मालूम नहीं
तीर जो दिल पर लगा वो जिंदगी ही ले गया
उम्र भर जिसको तराशा और बनाया देवता
जिंदगी की सारी खुशियां बेवफा ही ले गया
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परंपरा तुलसीदास की गालिब की सोच है
जो मान से बुलाता है तय जाते वहीं हैं हम
दशकों से लिख रहे हैं शाश्वत है काव्य क्या
होती है कविता क्या यह बताते वहीं है हम
दीपक से जल रहे हैं सतत अंधेरे से युद्ध है
जलना है भोर तक यह दिखाते हैं वहीं हैं हम
आराध्य गुरु हमारे हैं हम ख़ुद एकलव्य हैं
औरों का हौसला सदा ही बढ़ाते वहीं हैं हम
सेना बड़ी हो कितनी हमें हारना नहीं आता
हर युद्ध जीतने की कला बताते वहीं हैं हम
तर्कश से निकले तीर अब चढ़े हैं कमान पे
वापस तो कभी लौट कर आते नहीं है हम
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब