मन में क्यों भरा रहे घमंड
कोई होटल की बिखरी ओस में भींग रहा है
आज़ महका महका सा है सारा घर आंगन,
वो ज़ख्म जो दिखाई नहीं देते
दु:ख का रोना मत रोना कभी किसी के सामने क्योंकि लोग अफसोस नही
बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
दोहा पंचक. . . . . नटखट दोहे
हर गली में ये मयकदा क्यों है
*जन्मभूमि में प्राण-प्रतिष्ठित, प्रभु की जय-जयकार है (गीत)*
झूठ का दामन चाक किया,एक हकीकत लिख आए। चाहत के मोती लेकर एहसास की कीमत लिख आए। प्यार की खुशबू,इश्क ए कलम से,खत में लिखकर भेजा है। "सगीर" तितली के पंखों पर हम अपनी मोहब्बत लिख आए।
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD