"हम सभी यहाँ दबाव में जी रहे हैं ll
गोपियों का विरह– प्रेम गीत।
संघर्ष ज़िंदगी को आसान बनाते है
दोहा त्रयी. . . . शमा -परवाना
हवस में पड़ा एक व्यभिचारी।
जो जुल्फों के साये में पलते हैं उन्हें राहत नहीं मिलती।
जमाने के रंगों में मैं अब यूॅ॑ ढ़लने लगा हूॅ॑
हो पवित्र चित्त, चित्र चांद सा चमकता है।
Ajeeb hai ye duniya.......pahle to karona se l ladh rah
23/136.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
सच कहा था किसी ने की आँखें बहुत बड़ी छलिया होती हैं,
ये दुनिया है साहब यहां सब धन,दौलत,पैसा, पावर,पोजीशन देखते है
*चलो नहाऍं आज चाँदनी में घूमें हम दोनों (मुक्तक)*