Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jan 2025 · 6 min read

भारत में ‘दर्शनशास्त्र’ और दर्शनशास्त्र’ के समकालीन प्रश्न

ब्रह्माण्ड में आकस्मिक कुछ नहीं होता है! सब कुछ योजनाबद्ध चलायमान है! अपनी अपनी धारणाओं के एकतरफा पोषण हेतु समय समय पर लोगों ने सिद्धांत प्रस्तुत किये हैं!आकस्मिकता की पैरवी करने वालों की बुद्धि और मस्तिष्क में भी यह विचार योजनाबद्ध ढंग से ही आया है, आकस्मिक नहीं! और योजनाबद्ध ढंग से इसे लोगों को बतलाया जाता रहा है!इस या अन्य सिद्धांत के पीछे निहित योजना को हम शायद समझने में असफल रहते हों, यह बात अलग है!हरेक वस्तु, घटना, परिस्थिति, विचार, सिद्धांत आदि के बहुत कम हिस्से को हम जान पाने में समर्थ होते हैं तथा अधिकांश हिस्सा अनजाना ही रह जाता है!इस अनजानेपन के कारण ही लोगों को आकस्मिकता आदि की कल्पना करने का अवसर मिल जाता है! क्या हम अपने ज्ञान की अल्पांश सीमा को मानने के लिये भयभीत नहीं हैं? ज्ञात, अज्ञात और अज्ञेय में अपने ज्ञान को विभाजित करने से हमें हमारा अहंकार रोक रहा है! यदि हममें स्पष्टता और सहजता हो तो क्या हम अपने ज्ञान की सीमा को स्वीकार करने से भयभीत होंगे? जवाब होगा बिलकुल नहीं! इस मामले में जनसाधारण की अपेक्षा बुद्धिजीवी कहे जाने वाले लोग अधिक दयनीय स्थिति में रहते हैं! इसे बौद्धिकों की बौद्धिक कमजोरी ही कहा जा सकता है!
सांसारिक सफलता और आध्यात्मिक सफलता अलग अलग नहीं हैं! ये दोनों परस्पर जुड़े हुये एक ही हैं! लेकिन देवी और आसुरी संघर्ष के कारण इनको अलग -अलग मानने की परंपरा बन गई है!यदि इन्हें अलग भी मानते हैं तो सफलता के अग्रलिखित सूत्र हो सकते हैं-
सांसारिक सूत्र-
सत्ताशक्ति+धनशक्ति+बुद्धिशक्ति+मजहबशक्ति‌= सफलता
आध्यात्मिक सूत्र-
संकल्पशक्ति+अभ्यासशक्ति + वैराग्यशक्ति+ संयमशक्ति +साधनाशक्ति+ आत्मशक्ति + वीतरागशक्ति = सफलता
पाश्चात्य फिलासफर भारत में ‘दर्शनशास्त्र’ विषय के संबंध में कभी भी निष्पक्ष नहीं रहे हैं!पिछले 200 वर्षों के दौरान भारत में दर्शनशास्त्र के संबंध में जितना भी साहित्य मैक्समूलर,डायसन,मार्क्स, हेगल आदि सैकड़ों विचारकों ने लिखा है, वह सांप्रदायिक, वैचारिक, साभ्यतिक, सांस्कृतिक प्रदुषण रुपी प्रभुत्व से भरा हुआ है!पाश्चात्य विचारकों की पूर्वीय दर्शनशास्त्र के प्रति एक षड्यंत्रकारी शैली रही है कि पहले तो वो उससे नये विचार ग्रहण करते हैं तथा फिर उन्हें अपने ढंग से तोडमरोडकर प्रस्तुत करके उन्हें अपना मूल विचार बतलाकर पूर्वीय दर्शनशास्त्र की कमियाँ उजागर करने का ढोंग करते हैं!वेदों, ब्रह्म ग्रंथों, उपनिषदों,षड्दर्शनशास्त्र,चार्वाक, जैन, बौद्ध, शैव, वैष्णव, अद्वैत आदि तथा समकालीन दर्शनशास्त्र के प्रति पाश्चात्यों की ऐसी ही कुदृष्टि देखने और पढने को मिलती है! मैक्समूलर द्वारा संपादित ‘सैकर्ड बुक्स आफ द इस्ट’ के पचास खंडों में इसी कुदृष्टि के दर्शन होते हैं! पाश्चात्यों ने भारत में मौजूद दर्शनशास्त्र का अध्ययन तो किया लेकिन उसका प्रस्तुतीकरण बिलकुल सतही, उथला, बालवत, पूर्वाग्रहपूर्ण एव संकीर्णता से भरा हुआ है! उपरोक्त पचास खंडों में किसी क्रम का पालन नहीं किया गया है!जिसको जैसा, जहाँ से और जैसे भी मनघड़ंत सूझा, उसे एकत्र करके छाप दिया है! और फिर पूर्व के वेद, उपनिषद्,दर्शनशास्त्र, ब्रह्म, स्मृति, धर्म, सूत्र,जैन, बौद्ध, चीनी, ईरानी, इस्लाम आदि ग्रंथों को ले लिया है तो यहुदी और ईसाईयत के साहित्य को क्यों छोड दिया है? वह भी तो पूर्वीय साहित्य है! मैक्समूलर आदि को पता था कि पुराने और नये उपदेश यानि ओल्ड और निव टैस्टमैंट में निरा कूड़ा कर्कट भरा हुआ है! दर्शनशास्त्र के नाम से उनमें कुछ भी नहीं है! उनकी खुद की पोल पट्टी जो खुल जायेगी! ‘सैकर्ड बुक्स आफ द इस्ट’ पाश्चात्य या पूर्वीय किसी के भी द्वारा पढने योग्य ग्रंथ नहीं है!दुखभरी हैरानी की बात तो यह है कि भारत में पिछले 100 वर्षों के दौरान दर्शनशास्त्र पर लिखा गया अधिकांश साहित्य उपरोक्त मैक्समूलर आदि के ही अंधानुकरण पर लिखा गया है! भारतीय विश्वविद्यालय आज भी इसकी गिरफ्त में हैं!
दुनिया के इतिहास में ज्ञान प्राप्त करने के चार तरीके मौजूद रहे हैं- अनुकरण, विचार, अनुभव और अनुभूति! भारत में सनातन काल से ही इन चारों यानि अनुकरण,विचार, अनुभव और अनुभूति पर काम होता रहा है!चीनी विचारक कन्फ्यूशियस ने इनमें से पहले तीन यानि अनुकरण,विचार और अनुभव को महत्व दिया है!यहुदी, ईसाईयत और इस्लाम में केवल ‘अनुकरण’ पर जो दिया जाता रहा है!विज्ञान और नास्तिक कहलवाने वाले केवल ‘अनुभव’ पर आधारित रहते आये हैं!’अनुभूति’ पर सनातन काल से भारत का आधिपत्य रहता आया है! लेकिन पिछले साढ़े सात दशक के भारतीय राजनीतिक और धार्मिक शासकों ने सब गुड का गोबर कर डाला है!
इजराइल- हमास युद्ध, अमरीका -ईराक संघर्ष, अमरीका-अफगानिस्तान संघर्ष, अमरीका वियतनाम संघर्ष,रुस -अफगानिस्तान संघर्ष में लाखों निर्दोष मारे जा चुके हैं तथा खरबों डालर की संपत्ति का विनाश हो चुका है!विभिन्न अरब देशों और उनके आतंकवादी संगठनों की ईसाई देशों के हथियारों और राजनीतिक सहयोग से चलने वाली लडाईयों, संघर्षों और आतंकवादी हमलों से सारी धरती त्रस्त है!अमरीका और रुस समस्त संसार पर अपने आधिपत्य को स्थापित करने तथा अपने उपभोक्ता सामान को दुनिया के देशों में जबरदस्ती से बेचने के लिये सरकारों को गिराने, बैठाने आदि के लिये प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से करोड़ों निर्दोष नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया है!प्रेम, करुणा, भाईचारा, सह अस्तित्व का उपदेश देने वाले यहुदी, ईसाई और इस्लाम मजहब में मौजूद फिलासफी उपरोक्त युद्धों, नरसंहारों, महिलाओं के साथ बलात्कारों, आतंकवादी संगठनों तथा इन द्वारा खरबों डालर की संपत्ति के नुकसान को रोक क्यों नहीं पा रहे हैं? सही बात तो यह है कि इनकी फिलासफी की सीख ही जबरदस्ती से दूसरों पर खुद की प्रभुता,सर्वोच्चता,गुलामी, दासता और धींगामस्ती को थोपकर युद्धों,आतंकवाद,नरसंहार, वैमनस्य, मारकाट, लूटपाट, बलात्कार, गरीबी में धकेल देना है! समस्त धरती को बर्बाद कर देने वाले इनके इस अखिल वैश्विक घृणित खेल को समाप्त करने के लिये पाश्चात्य फिलासफर ने पिछले 200 वर्षों के दौरान कोई प्रभावी आंदोलन क्यों नहीं चलाया? यह सब इनकी फिलासफी के सत्य स्वरूप को दर्शाता है! पिछले एक वर्ष से चलने वाले इजराइल- हमास युद्ध में ही लगभग दो लाख से अधिक व्यक्ति मारे जा चुके हैं तथा छह लाख करोड़ की संपत्ति का नुकसान हो चुका है! बमबारी के कारण ईमारतों का पांच करोड़ टन से अधिक मलबा बन गया है! पहले एक वर्ष तक विनाश किया तथा अब नैतिकता, मानवीयता और मजहबी सौहार्द की आड़ लेकर निर्माण कार्य किया जायेगा! पहले हथियारों की बिक्री से रुपया कमाया और अब निर्माण के नाम पर रुपया करायेंगे! यह है इनकी विनाशकारी,स्वार्थी,
धूर्ततापूर्ण और उपयोगितावादी फिलासफी की असलियत!
संसार में मौजूद समस्त विज्ञान, दर्शनशास्त्र और फिलासफी में सृष्टि के विभिन्न कार्यों को आकस्मिक,पूर्वनियोजित,
उपयोगितावादी, पुरुषार्थ+ भाग्य इन चार के अन्तर्गत माना जाता रहा है!पहली तीन विचारधाराओं का संबंध विज्ञान और पाश्चात्य सैमेटिक से रहा है! चौथी का संबंध सनातन भारतीय संस्कृति और धर्म से रहा है! पहली तीन विचारधाराएं संसार में उथलपुथल,संघर्ष, भेदभाव,युद्ध, आतंकवाद, नरसंहार, मारामारी,भेदभाव और शोषण का कारण रहती आई हैं!चौथी जीवन-शैली ने लाखों वर्षों से सदैव करुणा, शांति, सह- अस्तित्व, भाईचारा, मेलमिलाप, परस्पर सम्मान, सहनशीलता,वसुधैव कुटुंबकम्, कृण्वंतो विश्वमार्यम् को बढावा दिया है! इस सनातन जीवन-शैली में सनातन धर्म के अतंर्गत शैव,वैष्णव, जैन,बौद्ध,चार्वाक,संत,
सिख आदि का समावेश है!ताओ,झेन आदि भी इसी से प्रेरित और पुष्पित हैं! सनातन और सैमेटिक यानि देवी और आसुरी विचारधाराओं के पिछले 2500 हजार वर्षों के संघर्ष में आसुरी या सैमेटिक या एकतरफा भौतिकवादी विचारधारा ने संसार पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने की भरपूर कोशिश की है! यह संघर्ष आज भी चल रहा है!सनातन विचारधारा की चहुंमुखी और सर्वतोमुखी जीवन- शैली भारत में अधिक तथा बाकी संसार में आज भी छिटपुट वर्तमान है! सबसे दुखद बात यह है कि पहले सैकड़ों वर्षों से भारत ने इस सैमेटिक भोगवादी विध्वंसकारी विचारधारा के कारण काफी नुकसान उठाना पडा है! भारत में आज की शिक्षा,शोध, स्वास्थ्य, खेतीबाड़ी,सुरक्षा,खानपान, वस्त्राभूषण, नीति,समाज, विधि, न्याय,दर्शनशास्त्र आदि सभी पर दबाव और दुष्प्रभाव मौजूद हैं! हमारी धर्मसत्ता, नीतिसत्ता,राजसत्ता, न्यायसत्ता और पूंजीसत्ता पर पाश्चात्य सैमेटिक भोगवादी आसुरी प्रभुत्व आज सिर चढकर बोल रहा है! महर्षि दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों ने इसको भरपूर चुनौती दी थी लेकिन आज वह सब समाप्तप्राय: है! इस समय आचार्य अग्निव्रत जैसे कुछ लोग विज्ञान,अध्यात्म, धर्म और दर्शनशास्त्र आदि सभी में महर्षि दयानंद सरस्वती के पदचिन्हों पर चलकर आसुरी सभ्यता को चुनौती देने का कार्य कर रहे हैं!लेकिन भारतीय शिक्षा संस्थानों में आज भी दर्शनशास्त्र सहित सभी विभागों में सनातन जीवन- शैली की अपेक्षा सैमेटिक एकतरफा पाश्चात्य भोगवादी उपयोगितावादी जीवन – शैली प्रभावी और हावी है!सत्ताबल,धनबल,धर्मबल तीनों मिलकर इसी को बढ़ावा देने पर लगे हुये हैं!
…….
आचार्य शीलक राम
दर्शनशास्त्र -विभाग
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय
कुरुक्षेत्र- 136119

Language: Hindi
31 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

सारा खेल पहचान का है
सारा खेल पहचान का है
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
जिसमें सिमट जाती है दुनिया ही हमारी
जिसमें सिमट जाती है दुनिया ही हमारी
Dr fauzia Naseem shad
वो तो एक पहेली हैं
वो तो एक पहेली हैं
Dr. Mahesh Kumawat
Subject-jailbird
Subject-jailbird
Priya princess panwar
शीर्षक -इंतजार तेरा
शीर्षक -इंतजार तेरा
Sushma Singh
इंसान उसी वक़्त लगभग हार जाता है,
इंसान उसी वक़्त लगभग हार जाता है,
Ajit Kumar "Karn"
4311💐 *पूर्णिका* 💐
4311💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
बड़े मासूम सवाल होते हैं तेरे
बड़े मासूम सवाल होते हैं तेरे
©️ दामिनी नारायण सिंह
खुद को खोल कर रखने की आदत है ।
खुद को खोल कर रखने की आदत है ।
अश्विनी (विप्र)
I hope you will never regret having a good heart. Maybe some
I hope you will never regret having a good heart. Maybe some
पूर्वार्थ
सुख दुख तो मन के उपजाए
सुख दुख तो मन के उपजाए
Sanjay Narayan
*सूने घर में बूढ़े-बुढ़िया, खिसियाकर रह जाते हैं (हिंदी गजल/
*सूने घर में बूढ़े-बुढ़िया, खिसियाकर रह जाते हैं (हिंदी गजल/
Ravi Prakash
अंतहीन
अंतहीन
Dr. Rajeev Jain
Justice Delayed!
Justice Delayed!
Divakriti
मंजिल
मंजिल
Dr. Pradeep Kumar Sharma
परिवार
परिवार
डॉ० रोहित कौशिक
दो किनारे हैं दरिया के
दो किनारे हैं दरिया के
VINOD CHAUHAN
दोहा पंचक. . . . दिन चार
दोहा पंचक. . . . दिन चार
sushil sarna
स्वच्छता
स्वच्छता
Rambali Mishra
वज़्न ---221 1221 1221 122 बह्र- बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुखंन्नक सालिम अर्कान-मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
वज़्न ---221 1221 1221 122 बह्र- बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुखंन्नक सालिम अर्कान-मफ़ऊल मुफ़ाईलु मुफ़ाईलु फ़ऊलुन
Neelam Sharma
"कभी-कभी"
Dr. Kishan tandon kranti
#मुक्तक-
#मुक्तक-
*प्रणय प्रभात*
संस्कृति / मुसाफ़िर बैठा
संस्कृति / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
सहगामिनी
सहगामिनी
Deepesh Dwivedi
मुझे आदिवासी होने पर गर्व है
मुझे आदिवासी होने पर गर्व है
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
टूटे तारों से कुछ मांगों या ना मांगों,
टूटे तारों से कुछ मांगों या ना मांगों,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
वो अब नहीं आयेगा...
वो अब नहीं आयेगा...
मनोज कर्ण
तल्खियां
तल्खियां
पाण्डेय चिदानन्द "चिद्रूप"
*न्याय दिलाओ*
*न्याय दिलाओ*
Madhu Shah
"आओ हम सब मिल कर गाएँ भारत माँ के गान"
Lohit Tamta
Loading...