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27 Aug 2022 · 1 min read

दो किनारे हैं दरिया के

दो किनारे दरिया के हूँ इस पार मैं उस पार तूँ
दोनों का एक हाल है हूँ बेकरार मैं बेकरार तूँ

एक हवा का झौंका आया दे गया संदेशा तेरा
प्यार का नहीं कर सका इज़हार मैं इज़हार तूँ

आसमाँ भी रो दिया यूँ सुनकर हमारी दास्ताँ
करके भी ना रख सका एतबार मैं एतबार तूँ

सूरज छिपा मायूस हो चाँद निकला गमज़दा
उजड़ा चमन कैसे करें गुलजा़र मैं गुलज़ार तूँ

दरिया बन कर बह गई अपनी अधूरी दास्ताँ
‘V9द ‘क्यों ना कर सके इंतजार मैं इंतजार तूँ

स्वरचित
( विनोद चौहान )

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