मैं फ़ोन हूँ (गीत)लेखक-तपतेश कुमार मेवाल

हाँ, हाँ मैं फोन हुँ, हर दिल की रिंगटोन हूँ।
खेलो नहीं गेम , मैं नैटवर्क का जोन हूँ!
हाँ जी,मैं फोन हूँ…
आओ प्यारे बच्चों, तुम्हें मैं सताऊँगा,
घोर कलयुग जैसा ,आतंक मचाऊँगा।
रोशनी लूँगा छीन ,आँसू खून के रुलाऊँगा,
मै हुँ काल युवाओं का ,सभी को फुसलाऊँगा …हाँ जी मैं फ़ोन हूँ
कहीं भी तुम रहना, मैं साथ तेरे जाऊँगा,
गर आये मेरी कैद में, मैं यूँ ही भटकाऊंगा ।
काम मेरा जोड़ना ,पर बच्चों को सताउँगा,
गेमिंग वाला भूत ,उनके सिर पे चढाऊँगा …हाँ जी मै फ़ोन हूँ
बच्चे भाई बहन इन ,सबको मैं फसाउँगा,
दिखाके प्यारे वीडियो ,मैं सबको उलझाऊँगा ।
फेसबुक इंस्टाग्राम , युट्युव पे मैं नचाउँगा,
रिश्ते दूंगा तोड आग ,सबमें लगाऊंगा…हाँ जी मैं फ़ोन हूँ
इस्तेमाल मेरा सिख ले , गुलाम बन जाऊँगा,
साथ मेरे चल फिर ,तेरे ही गीत गाऊँगा।
छू ले आसमान तेरी ,मंज़िल बन जाऊँगा,
जीत तेरी होगी ,कदमों में झुक जाऊंगा …हाँ जी मैं फ़ोन हूँ
प्यारी सी हर दिल की रिंगटोन बन जाऊँगा,
परख मेरे साथ को ,मनमीत बन जाऊँगा।
रिश्तें होगे प्यार के ,कभी ना भड़काऊँगा ,
प्यार हो हर दिल में, मैं यही गुनगुनाऊँगा…हाँ जी मैं फ़ोन हूँ