मैं न खेलूँ टोली में

घर आ जाओ साजन,सूना है मन आँगन।
छेड़ रही तन-मन,फागुनी बयार है ।
झूमे मेरा अंग-अंग, जैसे जल में तरंग।
सर चढ़ बोल रहा,होली का खुमार है।
सोच-सोच तेरी बात,कटती नहीं है रात।
याद तेरी आती जब ,दुखता कपार है।
देखा जब पिय पास, लौट आई तन साँस।
पिय लगा गले मन, हर्षित अपार है।।
डालो तन-मन रंग, छूटे नहीं कोई अंग।
भीग जाए तन सारा,मेरा इस होली में।
भर- भर पिचकारी, रंग डालो काया सारी।
काहे पिय हो लजाते,रंग डालो चोली में।
घर नहीं काका- काकी,करो नहीं ताका-झाँकी।
खुला पड़ा दरवाजा,सीधा आओ खोली में।
करो नहीं हमें तंग,नहीं हो जाएगी जंग।
खेलूँ बस तुझ संग, मैं न खेलूँ टोली में।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)