होली बड़ी निराली है

होली बड़ी निराली है
मदहोशी की प्याली है।
धार्मिक परम्परा है
सच्चाई है या ख्याली है।
होली बड़ी . . . . . .
घेरे पड़े हैं चारों तरफ से,
उच्चके बड़े मवाली है।
नतमस्तक तेरे दर पे,
आया सभी सवाली है।
पुजते भी हैं, जलाते भी हैं,
ये रात पुर्णिमा की काली है।
होली बड़ी. . . . .
बडी रहस्यमी लगती है,
एक बचता है तो एक जलती है।
विचित्र अनोखी अतिशयोक्ति
विश्वास संदेह संग संग चलती है।
मानते हैं कुछ नकारते हैं,
ये भी बड़ी बवाली है।
होली बड़ी . . . . . .
उथल पुथल मन हो उठता है,
ढ़ेरों सवाल जेहन में पलता है।
अजीब सी कश्मकश है,
दिलासा तो कभी हाथ मलता है।
राक्षसी सी बड़ी मयाली है।
होली बड़ी . . . . . . .