कुम्भ स्नान -भोजपुरी श्रंखला – अंतिम भाग – 3 – सफल नहान

कैसो बेचारी ऊ
संगम पहुँचली ,
उषा कूद कूद
खूब संगम नहीलिन।
गूडू क अम्मा के
लगे सास फूले ,
किनारे बैठ हफरी
उनके रहे छूटे।
व्यवस्था हुअन के
रहिल बहुत अच्छी ,
तमाम संत साधू के
सजल रहे बग्घी।
अनवन पकवान के
भंडारा चलत रहे ,
पुलिसिअन के बोल जैसे
फूल मुहें झरत रहे।
ऊपर से योगी जी
फूल सब पर बरसावे ,
नारा जयश्री राम के
बैकुंठे लुभावे।
कथा कही हो रहल
कही रामलीला ,
पजरवे पंडाल में
घुसकिन गुड्डू क अम्मा।
ऊ नहिलवे बिना
तब सुने लागिन कथा ,
नहाय उठी उषा
उधर उनके गजबे व्यथा।
गुड्डू के अम्मा कहि कहि
बुक्का फाड़ रोवे ,
थकल गुड्डू के अम्मा
कथा पण्डाले में सोवे।
ढूढते ढूँढत उषा
ऊ पण्डाले माँ पहुंची ,
सोवा देख उनके
जान जाने में अटकी।
उनका उठाईंन ऊ
गले लाग रोइन ,
गंगा यमुना के संगम
जस आस बरसाईंन।
कहीं दीदी गलती
बहुत भयल हमसे ,
यही पाछे जानत
रिसियाल हउ हमसे।
कुम्भ नहाये के भूत
इस कदर रहे चढ़िल ,
पर दीदी पाँव धरी
माफ़ी हमके दिहिन।
हाथ धरी दीदी के
उषा संगम ले गइली ,
नहाय साथै दुनो जन
खूब अघइलिन।
भयल दूर ओनकर
कडुवाहट मने के ,
धुल गयल पाप कुल
चौचक दुनो जने कै।
विधिवत नहाय धोय
निर्मेष घरे ऊ आ गयलिन,
कुम्भ मेला के हाल सभै
लगा निबुआ मिर्चे बतौलिन।
निर्मेष