दारुबाज बाराती
निकली थी बारात सभी खुश थे दूल्हे के घरवाले,
खुश थे उसके हीत-मीत बच्चे बूढ़े गोरे काले।
रस्ते में चौराहे पर बाराती गुटखा पान किए,
छलकाए कुछ जाम और फिर मस्ती में प्रस्थान किए।
पहुँचे तो कुछ लगे झूमने होश नहीं था चलने का,
यह दारू मौका कब देता भाई कहीं सम्हलने का!
आर्केस्ट्रा में लगे उलझने दूजा गीत बजाने पर,
हुई रार वर वधू पक्ष में इनके ही उकसाने पर।
लगे डालने जूठा खाना इक-दूजे की थाली में,
शब्द सभी शर्मा जाएंगे जुड़कर इनकी गाली में।
जो आटा गीला करते हैं बेबस की बदहाली में,
उनका गिरना अच्छा ही है बज-बज करती नाली में।
थे डीजे पर सब नाच रहे दे दे कर गलत इशारे,
वे सब के सभी लफंगे थे फिर किसको कौन सुधारे।
जयमाला का मंच सजा था, कुछ चढ़ने लगे शराबी,
बिना कहे मंचों पर जाना है सबसे बड़ी खराबी।
एक घराती ने बदचलनी पर इन सबको टोक दिया,
दूल्हे का जीजा गुस्से में जयमाला ही रोक दिया।
यूँ बात बात में बढ़ी बात फिर होने लगी लड़ाई,
शुभ विवाह के उस मौके पर यह था कितना दुखदाई।
धक्का-मुक्की खींचा-तानी जैसे हो खेल कबड्डी,
दूल्हा भी लगा हचकने जैसे टूट गई हो हड्डी।
दारूबाजों के हंगामे से टूट गई वह शादी,
बेटी का बाप लगा रोने आई ऐसी बर्बादी।
भूखे-प्यासे रहकर कोई दंपति कन्यादान करे,
वह निर्लज्ज बराती जो ऐसे में मदिरापान करे।
समधी जन अरमानों से संतति का व्याह रचाए थे,
कितने नीच रहे होंगे जो विघ्न डालने आए थे।
गाँठ बाँध लो बात हमारी इसको कभी भुलाना मत,
जो दारू के आदी हों तुम उनको कभी बुलाना मत।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 12/02/2025