सच कहना

सच कहना
इतना आसान तो नहीं रहा होगा ,
मेरे बिन जीना!!!!
याद तो बहुत आती होगी मेरी,
जब ,शीशे पे चिपकी मेरी बिंदी,देखते होंगे
काम से थके हारे आकर
खुद ही
उठाते होंगे गीला तौलिया,बिस्तर से।
किचन सब अस्त व्यस्त।
मौजे एक ही रंग के नहीं मिलते होंगे
दिल करता होगा चीखों मुझ पर।
पर मैं…………..
नहीं हूं वहां अब,
तुम्हारी गालियां सुनने को।
रोज़ खाना आर्डर करके खाते होंगे
लेकिन ऐसा तो तुम पहले भी करते थे
तब आर्डर मुझ पर चलता था
जरुर ढूंढते होंगे मुझे
बिस्तर पर
शारीरिक जरूरतों के लिए
लेकिन मैं…………
अब वहां नहीं हूं।
मैं वस्तु नहीं हूं ,न थी,न बनूंगी
मैंने नयी राहों पर पग धर दिया
अब पीछे नहीं हैं मेरा कुछ भी।
बस ऐसे ही मन में आया तो
पूछ लिया।
मगर तुम
सच कहना……….
सुरिंदर कौर