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3 Feb 2024 · 1 min read

अन्तर्मन की विषम वेदना

तुम घर आ ना पाओगे
जब कदम तुम्हारे बढ़ेंगे
मंजिल को पाने को
सपने को सच कर जाने को
तुम घर आ ना पाओगे
जब जिम्मेदारी का बोझ उठाओगे
जब बापू का कांधा बनना चाहोगे
तुम घर आ ना पाओगे
जब जीवन की सच्चाई से टकराओगे
जब शहर में बन्द कमरे अपनी छत को निहारोगे
तुम घर आ ना पाओगे
मां की आंखों के अश्रु
तुम्हारे अन्त पटल को झगझोरेगे
विषम वेदना क्या है कह ना पाओगे
तुम घर आ ना पाओगे

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Books from सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
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