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25 Oct 2024 · 1 min read

भरें भंडार

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भरें भंडार
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दीप आशा के जलायें दूर ये अँधियार हो ।
सुरसरी के नीर सा पावन दिलों में प्यार हो ।।1

हर तरफ फैले अँधेरे देख कर भी मौन हैं ।
चीर दें तम का कलेजा एक ऐसा वार हो।।2

द्वेष के बिखरे पड़े हैं हर तरफ काँटे यहाँ ।
बीन लें चुन-चुन उन्हें पथ में न कोई खार हो ।।3

मौन कलियाँ टूट जातीं खिल न पातीं डाल पर ।
अब नहीं इतना घिनौना यूँ कहीं व्यवहार हो ।।4

पूछता हूँ क्या सुरक्षित है यहाँ कोई कली ?
डाल के दिल में न किंचित भी कली का भार हो ।।5

बीज किसने फूट के बोये पता हमको नहीं ।
भाइयों का एक आँगन क्यों खड़ी दीवार हो ।।6

ऋद्धि आये सिद्धि पायें पर्व दीपों का मने ।
‘ज्योति’ की है कामना सबका भरा भंडार हो ।।7

-महेश जैन ‘ज्योति’
मथुरा ।
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