“*ए0आई0* v/s स्वरचित कविता”

तुलसी की महिमा घटी, घटे सूर सँग वृन्द,
कवि रसखानहु कहि रहे, खाउ मूल अरु कन्द।
काव्य मशीनी हय गयो, लागत जैसे फन्द,
जो अपने मन से लिखैँ, बचे लोग हँइ चन्द।
ए0 आई0 कविता लगै, जैसे कोउ निबन्ध,
आजादी ते हम लिखत, नहिं कोऊ अनुबन्ध।
“आशादास” हु कहि रहे, खुलि कै, तनिक न बन्द,
बुरो लगै, या फिरि करौ, साँची बात पसन्द।
भाव गयो लज्जत गई, मिटो न मन कौ द्वन्द्व,
ए0आई0 से अब कहौ, लिखि देउ कोऊ छन्द..!