पछुआ हवा

पछुआ जब बहने लगी,बोलें मुझसे कंत |
ठंडक सी लगने लगी, छाया रूप बसंत |u
छाया रूप बसंत , बयारें भीनी- भीनी |
रूप बसन्ती धार , प्रकृति है झीनी झीनी |
कहें प्रेम कविराय,रहे काहे तुम खजुआ |
बासंती परिधान, पहन कर आयी पछुआ |
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम