*वंदे भारत : रेल की पटरियों पर चलता हुआ हवाई जहाज*

वंदे भारत : रेल की पटरियों पर चलता हुआ हवाई जहाज
वंदे भारत के भीतर प्रवेश करने पर हवाई जहाज का एहसास होता है। सीटों के लुक से लेकर ट्रेन की आंतरिक साज-सज्जा को देखकर यात्री को एक बार तो सचमुच यह भ्रम हो जाता है कि कहीं मैं हवाई जहाज पर आकर तो नहीं बैठ गया। पूरी ट्रेन एसी चेयरकार है। सभी डिब्बे एक दूसरे से जुड़े हुए हैं अर्थात ट्रेन के भीतर ही भीतर सब डिब्बों में आसानी से आवागमन किया जा सकता है।
यात्रा पूरी तरह सुरक्षित है, क्योंकि ट्रेन के वाह्य दरवाजे ट्रेन चलते ही ऑटोमेटिक बंद हो जाते हैं । वह खोले नहीं जा सकते। एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में जाने के लिए स्लाइड वाले दरवाजे हैं। यह यात्री के निकट आते ही स्वत: खुल जाते हैं। इस प्रकार के दरवाजे बड़े होटलों और प्रतिष्ठानों में यद्यपि आम हैं ,लेकिन फिर भी आम नहीं हैं। बच्चों का मनोरंजन एक डिब्बे से दूसरे डिब्बे में जाने वाले इन दरवाजों से होता हुआ हमने खूब देखा।
डिब्बों में आधी-आधी सीटें आमने-सामने की ओर मुॅंह किए हुए स्थित थीं। इससे यात्रियों का एक दूसरे से मौन संवाद स्थापित हो रहा था।
वंदे भारत ट्रेन में भोजन और जलपान भी मिलता है । गर्म पानी और उसके साथ चाय का पाउडर ; इससे जो चाय बनी वह अत्यंत स्वादिष्ट थी। दो बिस्कुटों ने चाय का स्वाद दुगना कर दिया।
भोजन विविधता लिए हुए था। अरहर की दाल, चावल, पनीर की सब्जी और आलू-गोभी की रसेदार सब्जी के साथ दही और अचार अर्थात एक संपूर्ण भोजन । आलू-गोभी की रसेदार सब्जी न केवल स्वादिष्ट थी बल्कि गर्म भी थी। खाने के साथ ही हमें मूंगफली-गुड़ की गजक का एक पैकेट भी मिला अर्थात भोजन के साथ मीठे की जो परंपरा भारतीय परिवेश में चलती है, उसका निर्वहन वंदे भारत ने खूब किया ।
सुविधाजनक रीति से कुर्सी के आगे टेबल डालकर आसानी से खाने की व्यवस्था थी। एक लीटर पानी की बोतल सफर शुरू होते ही सब यात्रियों को दिया गया । यह अपने आप में पर्याप्त था। यद्यपि कुछ यात्रियों के मॉंगने पर उन्हें आधा लीटर पानी अतिरिक्त रूप से निःशुल्क दिया गया। कुछ यात्रियों ने उसके बाद भी पानी पिया । उसका शुल्क वंदे भारत कर्मचारी ने यात्रा के मध्य ही उनसे ले लिया।
शौचालय में भारतीय और पाश्चात्य दोनों पद्धतियों के शौचालय आमने-सामने हर डिब्बे के साथ थे । शौचालय अत्यंत साफ सुथरा था । पानी छोड़ने की व्यवस्था सुंदर थी। कागज के नैपकिन भी रखे थे। ‘लिक्विड साबुन’ दीवार पर फिक्स था। यह देखकर और भी अच्छा लगा कि दीवार पर शौचालय के भीतर गीले हाथों को सुखाने की व्यवस्था का बिजली का संयंत्र भी लगा था। सभी उपकरण अच्छा काम कर रहे थे । यह बात न केवल रेलवे की मेंटेनेंस की दक्षता को दर्शा रहा था, अपितु वंदे भारत से यात्रा करने वाले यात्रियों की अनुशासित मानसिकता का भी परिचायक था। साफ-सफाई के लिए जितनी जिम्मेदार रेलवे है, उतने ही जिम्मेदार यात्री भी हैं । वंदे भारत की सफाई एक आदर्श कहीं जा सकती है । एसी चेयरकार की कुर्सियॉं आरामदायक थीं। आसानी से पैर फैला कर बैठा जा सकता था। पैरों को टिकाने के लिए आगे की सीट के निचले हिस्से पर स्टैंड भी बना था। यात्रियों को और क्या चाहिए ! धन्यवाद रेलवे !
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वंदे भारत ट्रेन (कुंडलिया)
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आगे बढ़ती रेलवे, अद्भुत इसकी देन
वायुयान-सी लग रही, वंदे भारत ट्रेन
वंदे भारत ट्रेन, अलौकिक दृश्य सुहाता
भीतर का आभास, हवाई-यात्रा लाता
कहते रवि कविराय, भाग्य भारत के जागे
वंदे भारत ट्रेन, सभी ट्रेनों में आगे
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(यात्रा तिथि: 31 जनवरी 2025 सायंकाल मुरादाबाद से लखनऊ)
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615 451