गीत- मुहब्बत कर हसीनों से…
मुहब्बत कर हसीनों से नहीं कम ये नगीनों से।
हँसे सागर तभी दिल से मिले जब वो सफ़ीनों से।।
करोगे चाह दिल से तुम असर वो प्यार गायेगा।
मिला दिल से वही दिल में हँसेगा नित हँसाएगा।
जुड़ो ऐसे जुड़ें जैसे तसव्वुर हैं तरानों से।
हँसे सागर तभी दिल से मिले जब वो सफ़ीनों से।।
नज़ारें नूर की चादर बिछाते हैं यहाँ जैसे।
बनें हम भी खिलें हम भी रिवायत से यहाँ ऐसे।
मुसाहिब बन सफ़र आसान हरपल है महीनों से।
हँसे सागर तभी दिल से मिले जब वो सफ़ीनों से।।
बहारों से करे यारी तभी गुलशन खिला करता।
मुहब्बत से मुहब्बत पर ज़ुदा जादू चला करता।
चलो हमतुम मिलें ‘प्रीतम’ मुकम्मल बन ज़ुबानों से।
हँसे सागर तभी दिल से मिले जब वो सफ़ीनों से।।
मुहब्बत कर हसीनों से नहीं कम ये नगीनों से।
हँसे सागर तभी दिल से मिले जब वो सफ़ीनों से।।
शब्दार्थ- सफ़ीना- नाव/कश्ती, तसव्वुर- विचार/भाव, तरानों- गीतों, रिवायत- परंपरा, मुसाहिब- मित्र/संगी,
आर.एस.’ प्रीतम’