रूह की राह जान तक पहुंचा

फिक्र की फिर उड़ान तक पहुंचा
उम्र के जब ढलान तक पहुंचा
रूह की राह जान तक पहुंचा
इश्क तब आसमान तक पहुंचा
मेरी आंखों में खून उतर आया
तंज़ जब खानदान तक पहुंचा
शाह को होश तक नहीं आया
शोर तो आसमान तक पहुंचा
बस जरूरत थी घर बनाने की
ज़हन लेकिन मकान तक पहुंचा
सैकड़ो दर्द सह लिये है मैंने
तब अना के उफान तक पहुंचा
हाथ “अरशद” पकड़ भी ले कोई
कौन किसकी जबान तक पहुंचा