कुंभ मेला और सुंदरी
सब जानते हैं दिव्य धाम है प्रयागराज,
किंतु मान रखने का ध्यान कहाँ आज है।
खोजते हैं नैन सुंदरी को वहाँ घूम-घूम,
भक्ति भाव से विरत हो गया समाज है।
गए हैं नहाने किंतु रूप ही निरखते हैं,
नयनों में उनके न शर्म है न लाज है।
धर्म, आचरण में उतारेंगे कदापि नहीं,
कहते फिरेंगे सिर्फ धर्म पर नाज है।
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 25/01/2025