*रोटी की तलाश में बेटे, कोसों दूर हुए (हिंदी गजल)*

रोटी की तलाश में बेटे, कोसों दूर हुए (हिंदी गजल)
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1)
रोटी की तलाश में बेटे, कोसों दूर हुए
पिता और माता किस्मत से, यों मजबूर हुए
2)
अमिट लकीरों ने हाथों पर, जो लिख डाला था
नहीं बदल पाए हम कण-भर, थककर चूर हुए
3)
हमको क्यों पहचानेंगे वह, पैसा आने पर
भाई और भतीजे थे जो, आज हजूर हुए
4)
रिश्वत खिला-खिला कर हर दिन, फाइल पास हुई
हर दफ्तर के आमतौर पर, यह दस्तूर हुए
5)
नहीं एक भी कानी कौड़ी, हमने रिश्वत दी
घर से दफ्तर तक के चक्कर, यों भरपूर हुए
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज), रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451