ज़रूरी कवि
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मैं नहीं जानता ये कौन तय करता है कि
कौन ज़रूरी है और कौन ज़रूरी नहीं
कौनसी कविता ज़रूरी है और कौन सी नहीं,
कौन सा कवि कवि ज़रूरी है और कौन सा नहीं।
क्या ज़रूरी है वह जो आपका प्रिय हो,
या वह जो दिलों में हलचल मचा दे,
क्या वह जो व्यावहारिक हो,
या वह जो अधूरा होकर भी
हमारे भीतर के तंतुओं को छेड़ दे।
कभी-कभी एक साधारण शब्द,
कविता से अधिक बड़ा बन जाता है
अपनी अनकही आवाज़ में,
पूरी दुनिया समाहित कर जाता है।
क्या वह कविता ज़रूरी है जो समझ में आए,
या वह जो पंक्तियों के बीच बसी हो,
जो समझ के पार हो,
जो हर बार नयी अर्थों में रूपांतरित हो।
कविता और कवियों को ज़रूरी
और ग़ैर ज़रूरी में बाँटना,
क्या ऐसा करना ज़रूरी है?
क्योंकि जो ज़रूरी है मेरे लिए
ज़रूरी नहीं वो ही ज़रूरी हो तेरे लिए।
कौन से कवि को हम ‘कवि’ मानते हैं?
क्या वो जो शास्त्रों में दर्ज हो,
या वो जो समय से बाहर हो,
जो अपनी विचारधारा से लड़े और खुद को खोजने में लगा हो।
क्या एक कवि की अहमियत उसकी प्रसिद्धि से मापी जाए
या उसकी लिखी हर पंक्ति की गहरी सच्चाई से?
क्या वह जो जनमानस तक पहुँचे,
या वह जो खुद को छिपाकर,
दुनिया को नये नजरिए से देखने की क्षमता रखे।
यह सवाल जटिल है, और शायद उत्तर नहीं है,
क्योंकि कविता कभी भी सीमाओं में नहीं बंधती
जो दिल को छू ले, वही कविता है,
जो हकीकत को नयी दिशा दे, वही कविता है,
इसलिए, यह तय करना नहीं हमारा काम है,
कि कौन ज़रूरी है और कौन नहीं।
क्या ज़रूरी है और क्या ज़रूरी नहीं
हमारी यात्रा बस यही हो,
कि हम शब्दों में जीवन ढूंढ़ें,
और हर कविता में अपनी खुद की ज़रूरत पाएं।