ज़िंदगी अपनी-अपनी,
ज़िंदगी अपनी-अपनी,
दास्ताँ अपनी-अपनी,
ख़्वाहिशें अपनी-अपनी,
मंज़िलें अपनी-अपनी।
ज़ुस्तज़ू अपनी-अपनी,
उल्फ़तें अपनी-अपनी,
तन्हाइयाँ अपनी-अपनी,
राहतें अपनी-अपनी।
दिन भर भीड़ में रहना,
रोज़ शबे-हिज़्र सहना
नींदें चीख-चीखकर,
तोड़ते रहती सपना।
कभी ख़ुद ही से डरना
कभी बज़्म से मुकरना,
किसी के दिल में रहना
किसी को दिल में रखना।
न वस्ल आसां यहांँ,
न ख़्वाबों की ताबीर आसांं
न ज़िंदगी आसां यहांँ,
न मौत की लकीर आसां।
न दोस्त आसां यहाँ
न दुश्मनों से जंग आसां,
न तलाशना आसां यहाँ,
न खो पाना आसां।