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12 Jan 2025 · 1 min read

ज़िंदगी अपनी-अपनी,

ज़िंदगी अपनी-अपनी,
दास्ताँ अपनी-अपनी,
ख़्वाहिशें अपनी-अपनी,
मंज़िलें अपनी-अपनी।

ज़ुस्तज़ू अपनी-अपनी,
उल्फ़तें अपनी-अपनी,
तन्हाइयाँ अपनी-अपनी,
राहतें अपनी-अपनी।

दिन भर भीड़ में रहना,
रोज़ शबे-हिज़्र सहना
नींदें चीख-चीखकर,
तोड़ते रहती सपना।

कभी ख़ुद ही से डरना
कभी बज़्म से मुकरना,
किसी के दिल में रहना
किसी को दिल में रखना।

न वस्ल आसां यहांँ,
न ख़्वाबों की ताबीर आसांं
न ज़िंदगी आसां यहांँ,
न मौत की लकीर आसां।

न दोस्त आसां यहाँ
न दुश्मनों से जंग आसां,
न तलाशना आसां‌ यहाँ,
न खो पाना आसां।

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