ना जाने क्या हो गया है मुझे जाने कहाँ खो गया हूँ मैं, और ना

ना जाने क्या हो गया है मुझे जाने कहाँ खो गया हूँ मैं, और ना कुछ लिखा जा रहा है कुछ पढ़ा, ना जाने क्यों और क्या क्या सोचता हूँ मैं अब ना सारा दिन खुशी की तलाश मे क्यूँ भटकता हूँ मै, गर जो कभी कहीं ज़रा खुशी मिल भी तो भी खुद को कोसता हूँ मै.. जाये सब कुछ तो है पर फिर भी क्यूँ नहीं हू संतुष्ट मैं ना जाने क्या के लिये हूँ असन्तुष्ट में मन घबराता है, दिल बेचैन हो जता है ‘जब अपनी परेशानिया देखता हूँ मैं डरता हूं कहीं कोई कमज़ोर ना समझले पर कर गुज़रने की हिम्मत भी खो चुका हू मैं हसना चहता हूं पर हालात-ए-जींदगी हसने नहीं दें रही है रोना चहता हूँ पर जिम्मेदारियां रोने नहीं दे रही,
मैं अक्सर देखता हूँ ख्वाब मोहब्बत के पर हकिकत से भी वाकिफ हूँ मै
कोई नहीं हैं मेरा, खुद ही खुद का साथी हूँ मै…. और चाहे कुछ भी कह लो, पर लोगो की निम्रत से वाकिफ हूँ मैं… हाँ बोहोत अकेला हूँ पर खुद के लिए काफी हूँ मैं..