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22 Feb 2024 · 2 min read

एश्वर्य

कमलपत्राक्ष !
आकांक्षी हूँ
आपके पूर्ण रूप दर्शन का
ओह ! तो देख
मेरे एक ही रूप में-
अष्ट वसुओं, ग्यारह रूद्रों
दोनों अश्विनी कुमारों और मरूतों को भी
देख गुडाकेश !
पर कैसे देख पाएगा ?
अपने प्राकृत नेत्रों से
तो ग्रहण कर दिव्य नेत्र
और दर्शन कर
इन दिव्य नेत्रों से
मेरे एकत्व शरीर में
सम्पूर्ण जगत् का.

कैसा था महायोगेश्वर हरि का
परम् एश्वर्यरूप ?
सहस्त्र सूर्यों की संगठित प्रभा
बौनी थी ‘हरि’ की प्रभा से
अनन्त विस्तार
अनन्त बाहु
सबकुछ तो था अनन्त
विस्मय से पूर्ण
रोमांचकारी.
देव !
मैं देख रहा हूँ
आपके एकात्म शरीर को
समा गए हैं जिसमें समस्त देवता
ग्रह-नक्षत्र,
और सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड ही,
सभी विस्मित हैं
भयाक्रांत हैं
ऐसे दिव्यरूप के दर्शन से.

क्या है ?
‘घोररूप’ के सृजन का रहस्य
यह घोररूप क्या ?
लोकों का नाश करने वाला
क्या ‘काल’ है ?
उत्तर आता है-
युद्धभूमि में
सभी ग्रास बन चुके हैं
इस काल के
सब प्राप्त हो चुके हैं
‘मृत्यु’ को
पार्थ !
तुम तो निमित्त मात्र हो
सव्यसाची ! उठो !
सब मृत हो चुके हैं
पहले ही
द्रोण, भीष्म, कर्ण
और अन्य समस्त योद्धा भी
सब मारे जा चुके हैं
मेरे द्वारा
अपराधी जो ठहरे
असत्य को प्रतिष्ठित करने जो उतरे
बस,
मृत को ही तो मारना है
जिसे काल ने ग्रास बना लिया हो
मृत्यु को प्राप्त हो चुका हो
उसे मारने में
नृशंसता की गंध कहाँ ?

गाण्डीवधारी समझ गया रहस्य
परमसत्ता का
विराट रूप का
और याचना करने लगा
उसी चतुर्भुज रूप के लिए
जिसे उसने देखा था
विराट स्वरूप के पहले
अपनी प्राकृत नयनों से

Language: Hindi
1 Like · 160 Views
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