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4 Jan 2025 · 1 min read

अरसे के बाद, तस्लीम किया उसने मुझे,

अरसे के बाद, तस्लीम किया उसने मुझे,
जब, उसपे कोई इश्तिहा न रह गया मुझे।

कहाँ-कहाँ, कब-कब, न मिलता रहा उसे,
जब मैं दूर हुआ, तब वो समझ आया मुझे।

हर नफ़स में उसका ख़याल, हर नज़र वो,
यक-ब-यक, फिर ख़ाक लगने लगा मुझे।

उम्र भर, मैं ख़ुद को कमतर समझता रहा,
हक़ीक़त देखी, तो जमाना कमतर लगा मुझे।

अपनी क़द्र का मयार, यों देखना मिरे जेहन में,
हर ख़त मेरी किताब में है, जो तुमने लिखा मुझे।

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