मैंने हमेशा खुद को अकेला ही पाया,
मैंने हमेशा खुद को अकेला ही पाया,
जब भी मैंने चाहा की कोई आए मेरे पास बैठे मुझे सुने मुझे समझे मुझसे दो पल ठहरके बाते करें, उस वक्त सबसे ज्यादा खुद को मैंने अकेला ही पाया…
मुझे किसी ने सुना ही नहीं और ना ही किसी ने समझा, मैंने अपना ज्यादातर समय अकेले ही बिताया, अपनी परेशानियों से अपनी तकलीफो से मैंने खुद ही लड़ा…
अपनी उलझनों को भी खुद ही सुलझाया, अपनी बिखरी हुई जिंदगी को मैंने खुद ही संभाला, मैंने जब भी चाहा की मेरी परेशानियों को मेरी तकलीफो को कोई सुनें, मुझसे बात करें…
उस वक्त मुझसे किसी ने बात नहीं किया ना ही किसी ने सहारा दिया और ना किसी ने साथ दिया, सबने बस अपना mood अपनी खुशी अपनी हंसी देखी..!!