बोलने से पहले अक़्सर सोचता हूँ, मैं
बोलने से पहले अक़्सर सोचता हूँ, मैं
नाजाने क्यों ख़ुद को इतना खरोंचता हूँ, मैं
हर्फ़ों पर साधकर चुप्पी अपने
अश्रु ख़ुद के स्वयं पोछता हूँ, मैं
बोलने से पहले अक़्सर सोचता हूँ, मैं
नाजाने क्यों ख़ुद को इतना खरोंचता हूँ, मैं
हर्फ़ों पर साधकर चुप्पी अपने
अश्रु ख़ुद के स्वयं पोछता हूँ, मैं