“मौन कविता “
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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नहीं मैं
गीत गाता हूँ
नहीं रचना
मेरी बनती
नहीं कोई
सुर मेरे बनते
नहीं आवाज
ही बनती
करूँ क्या
मैं भला बोलो
मुझे कुछ
भी नहीं सूझे
कहाँ से
दर्द को लाऊँ
कोई यह
बात ना बुझे
कभी मैं
उनसे मिलता हूँ
जिन्हें रोटी
नहीं मिलती
बहाते अश्रू की धारा
कभी भी
प्यास ना बुझती
बिलखते
नन्हें बालक हैं
उन्हें पोषण
कहाँ से हो
कोई नहीं
ध्यान देता है
उन्हें चिंता
कहाँ से हो
बहुत से
लोग बंचित हैं
उन्हें सुविधा
नहीं मिलती
जो जंगल
पर्वतों में हैं
उन्हें नहीं
रोशनी मिलती
बहुत है
दर्द दुनियाँ में
कहूँ तो
मैं कहूँ किसको
सब अपने
में लगे ही हैं
कोई सुनता
नहीं इसको
नहीं मैं
गीत गाता हूँ
नहीं रचना
मेरी बनती
नहीं कोई
सुर मेरे बनते
नहीं
आवाज ही बनती
करूँ क्या
मैं भला बोलो
मुझे कुछ
भी नहीं सूझे
कहाँ से
दर्द को लाऊँ
कोई यह
बात ना बुझे !!
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
16.12.2024