Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
27 Jan 2025 · 3 min read

विश्व की सबसे कम आयु की अंतर्राष्ट्रीय बाल व्यास श्वेतिमा माधव प्रिया: सनातन धर्म की प्रेरणा

विश्व की सबसे कम आयु की अंतर्राष्ट्रीय बाल व्यास श्वेतिमा माधव प्रिया: सनातन धर्म की प्रेरणा

पांच वर्ष की आयु में ही कंठस्थ कर लिया श्रीमद भागवत महापुराण के कथा का सार

परिचय और प्रारंभिक जीवन
विश्व की सबसे कम आयु की अंतर्राष्ट्रीय भागवत कथा वाचिका, बाल व्यास श्वेतिमा माधव प्रिया, धर्म और संस्कारों की वह ज्योति हैं, जिन्होंने मात्र पाँच वर्ष की आयु में श्रीमद्भागवत का गूढ़ ज्ञान आत्मसात कर लिया। उनकी वाणी में श्रीकृष्ण के प्रेम, भक्ति और ज्ञान का अद्भुत समन्वय है। श्वेतिमा का जन्म एक धार्मिक और संस्कारी परिवार में हुआ। उनके पिता सौहार्द शिरोमणि संत डॉ. सौरभ, धराधाम इंटरनेशनल के प्रमुख हैं, जो समाजसेवा और मानवीय एकता के लिए समर्पित हैं। उनकी माता डॉ. रागिनी पांडेय एक समाजसेवी और देहदानी हैं। परिवार की धार्मिक पृष्ठभूमि ने श्वेतिमा को छोटी आयु में ही आध्यात्मिकता और सनातन धर्म की ओर आकर्षित किया।

पारिवारिक पृष्ठभूमि
श्वेतिमा के पिता संत डॉ. सौरभ मानवता और पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित एक प्रेरक व्यक्तित्व हैं। उनकी माता रागिनी पांडेय नारी शक्ति और समाज कल्याण का प्रतीक हैं। उनका भाई, बाल भक्त सौराष्ट्र, मात्र चार वर्ष की आयु में भक्ति के मार्ग पर चलने का प्रेरक उदाहरण है। इस पवित्र परिवार ने श्वेतिमा के व्यक्तित्व और ज्ञान को सशक्त रूप से आकार दिया।

श्वेतिमा के गुरु
श्वेतिमा की अध्यात्मिक यात्रा में उनके गुरु का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उनके गुरु आचार्य शिवम शुक्ला जी महाराज हैं, जो ख्यातिलब्ध कथा प्रवक्ता और सनातन धर्म के उच्च आचार्य हैं। उनके मार्गदर्शन में श्वेतिमा ने भागवत कथा के गूढ़ ज्ञान को और भी गहराई से समझा और इसे साकार रूप में प्रस्तुत किया।

इसके साथ ही, संगीत शिक्षिका सुनिशा श्रीवास्तव और अवनिंद्र सिंह का भी श्वेतिमा के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान है। सुनिशा श्रीवास्तव ने उन्हें संगीत की शिक्षा दे रही है जो शास्त्रीय संगीत और भक्ति गीतों को उनके कथा वाचन में जोड़ने का एक अद्भुत तरीका बन गया। अवनिंद्र सिंह ने भी श्वेतिमा को अपनी ज्ञान यात्रा में सहायक बनकर मार्गदर्शन कर रहे है।

सनातन धर्म के प्रति योगदान
श्वेतिमा माधव प्रिया का उद्देश्य सनातन धर्म के अमूल्य विचारों को जन-जन तक पहुँचाना है। वह वसुधैव कुटुंबकम् के आदर्श को प्रसारित करती हैं। अपनी कथाओं के माध्यम से उन्होंने लाखों लोगों को श्रीमद्भागवत के गूढ़ ज्ञान से परिचित कराया है।

उनकी वाणी में संस्कृत श्लोकों और उनकी सरल व्याख्या का संगम है। उदाहरण के लिए, वह भागवत के इस श्लोक का अर्थ सरलता से समझाती हैं:
“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।”
(श्रीमद्भगवद्गीता 4.8)
वह बताती हैं कि भगवान हर युग में धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए अवतार लेते हैं। यह श्लोक मानवता और धर्म के प्रति हमारे कर्तव्यों को समझने का संदेश देता है।

धार्मिक कार्य और प्रेरणा
श्वेतिमा ने भागवत कथा को केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का मार्गदर्शन बताया है। वह इसे अध्यात्म, विज्ञान और सामाजिक समरसता का संगम मानती हैं। उनके धार्मिक कार्यों में प्रमुख हैं:

1. अध्यात्मिक शिक्षा: बच्चों और युवाओं को धर्म और संस्कृति से जोड़ने के लिए उन्होंने विशेष कार्यक्रम आयोजित किए।

2. पर्यावरण संरक्षण: श्रीमद्भागवत के संदेश के अनुरूप प्रकृति के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक किया।

3. सामाजिक समरसता: जाति, धर्म और वर्ग की दीवारों को तोड़ने के लिए अपने प्रवचनों में प्रेम और करुणा का संदेश दिया।

4. महिलाओं का सशक्तिकरण: नारी शक्ति को सनातन धर्म के परिप्रेक्ष्य में व्याख्या कर समाज में महिलाओं की महत्ता स्थापित की।

श्वेतिमा माधव प्रिया की प्रेरणा
उनकी प्रेरणा उनके पिता मानद कुलपति उपाधि विभूषित, देहदानी सौहार्द शिरोमणि संत डॉ. सौरभ और उनकी माता देहदानी डा रागिनी पांडेय हैं, जिन्होंने उन्हें धर्म और सेवा का वास्तविक अर्थ समझाया। उनका परिवार धराधाम इंटरनेशनल के माध्यम से मानवता, पर्यावरण और समाज सेवा के लिए कार्य करता है।

भविष्य की दृष्टि
श्वेतिमा का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में सनातन धर्म के दिव्य संदेश को फैलाना है। वह चाहती हैं कि लोग धर्म को केवल एक परंपरा न समझें, बल्कि इसे अपने जीवन का आधार बनाएं।

बाल व्यास श्वेतिमा माधव प्रिया न केवल अपनी आयु के कारण अद्वितीय हैं, बल्कि उनकी गहन विद्वता और भक्ति ने उन्हें विश्वभर में पहचान दिलाई है। उनके कार्य सनातन धर्म के उत्थान के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। उनकी कथा, ज्ञान और विचार हमें सिखाते हैं कि धर्म केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि मानवता की सेवा और प्रेम का पथ है।

जीवनी का यह श्लोक उनकी प्रेरणा को व्यक्त करता है:
“सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्।”
यह श्लोक उनके जीवन और कार्यों का सार है, जिसमें पूरे विश्व के सुख और कल्याण की कामना है।

Loading...