मेरे पिता की मृत्यु
वो मुझे इस हाल में छोड़कर चले गए कहाँ,
मेरे पिता तुम मर गए मैं अकेला रह गया यहाँ ।।
अब मेरा कौन है किससे लूँगा कोई नेक सलाह,
हर कोई लालच से जुड़ा है सब स्वार्थी हैं यहाँ ।।
घर बट रहा है देखो जैसे कट रहा कोई तरबूज है,
ईंटो की गिनती हो रही है हर कोई खुद में मगरूर है ।।
भाई भाई से लड़ रहा है कौन रोके उनको यहाँ ।।
कमरों में द्वार हो गए हैं जैसे हो गए हैं सब अजनबी यहाँ ।।
मन सभी का असंतुष्ट है कौन किसकी परवाह करे,
आपने जो रिश्ते बनाए अब कौन उनमें विश्वास भरे ।।
माता भी असहाय है दिन रात रोती आपकी याद में,
मेरे पिता तुम चले गए क्यों छोड़कर हमको इस मझदार में ।।
हमारा मिलन अब ना होगा कभी भले ही हों हम पास में,
हाय ये मैंने क्या किया जला दिया आपको दाहसंस्कार की आग में ।।
prAstya……..(प्रशांत सोलंकी)